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________________ विवाह क्षेत्र प्रकाश १८७ वह कितनी विलक्षण तथा निसार मालूम होती है । आपने 'राजाओको अच्छा 'पाणविक' बनाया और उन्हे खूब बाजत्रीका काम दिया । और एक वाजत्रीका ही काम क्या, जव स्वयवरमे राजाओ तथा राजकुमारोके सिवाय दूसरेका प्रवेश ही नही होता था तव तो यह कहना चाहिये कि पानी पिलाने, जूठे वर्तन उठाने और पखा झोलने आदि दूसरे सेवा - चाकरीके कामो मे भी वहाँ राजा लोग ही नियुक्त थे । यह आगन्तुक राजाओका अच्छा सम्मान हुआ | मालूम नही, रोहणीके पिताके पास ऐसी कौन-सी सत्ता थी, जिससे वह कन्याका पाणिग्रहण करनेकी इच्छासे आए हुए राजाओको ऐसे शूद्र कर्मोमे लगा सकता । जान पडता है यह सव समालोचकजीकी कोरी कल्पना ही कल्पना है, वास्तविकतासे इसका कोई सम्बंध नही । ऐसे महोत्सवके अवसरपर आगन्तुकजनोके विनोदार्थ और मागलिक कार्योंके सम्पादनार्थ गाने-बजानेका काम प्राय दूसरे लोग ही किया करते हैं, जिनका वह पेशा होता है - स्वयवरोत्सवकी रीति-नीति, इस विपयमे, उनसे कोई भिन्न नही होती । इसके सिवाय, समालोचकजी एक स्थानपर लिखते हैं "रोहिणीने जिस समय स्वयंवरमण्डपमे किसी राजाको नही वरा और धायसे बातचीत कर रही थी उस समय मनोहर वीणाका शब्द सुनाई पडा" । इससे यह भी साफ जाहिर होता है कि स्वयंवरमडपमे वसुदेवजी एक राजाकी हैसियतसे अथवा राजाके वेपमे पस्थित ――― L था।” “उन्होंने | वसुदेवने ] स्वयवरमडपमें प्रवेश किया और जहाँ ऐसे राजा वैठे हुए थे जो कि वाटित्र-विद्याविशारद थे उन्हीं में जाकर बैठ गए ।"
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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