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________________ १४८ युगवीर-निवन्वावली इसलिये समालोचकजीका यह कोरा भ्रम है कि सभी भील-कन्याएँ काली, वदसूरत तथा डरावनी होती है अथवा उनके साथ उच्च-कुलीनोका विवाह नही होता था। परन्तु जरा भील-कन्या थी, यह बात जिनसेनाचार्यके उक्त वाक्योको लेकर निश्चितरूपसे नही कही जा सकती। उनपरसे जराके सिर्फ म्लेच्छ कन्या होनेका ही पता चलता है, म्लेच्छोकी किसी जाति विशेपका नही। हो सकता है कि प० गजाधरलालके कथनानुसार वह भील-कन्या ही हो । परन्तु प० दौलतरामके कथनानुसार वह म्लेच्छखडके किसी म्लेच्छराजाकी कन्या मालूम नही होती, क्योकि जिनसेनाचार्यने साफ तौरसे वसुदेवके चपापुरीसे उठाये जाने और भागीरथी गगा नदीमे पटके जानेका उल्लेख किया है और यह वही गगा नदी है जो युक्तप्रात और बगालमे बहती है-वह महागगा नही है जो जैन शास्त्रानुसार आर्यखण्डका म्लेच्छखण्डसे अथवा, उत्तरभारतमे, म्लेच्छखण्डका म्लेच्छखडसे विभाग करतीइसका 'भागीरथी' नाम ही इसे उस महागगासे पृथक् करता है, वह 'अकृत्रिम' ओर यह, ‘भागीरथ'-द्वारा लाई हुई है (भगीरथेन सानीता तेन भागीरथी स्मृता )। चपा नगरी भी इसके पास है । अत 'जरा' इसी भागीरथी गगाके किनारेके किसी म्लेच्छ राजाकी पुत्री थी और इससे यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि पहले म्लेच्छ-खण्डोके म्लेच्छोकी कन्याओसे ही नही, किंतु यहाँके आर्यखण्डोद्भव म्लेच्छोकी कन्याओसे भी विवाह होता था। उपश्रेणिकका भील-कन्यासे विवाह भी उसे पुष्ट करता है। इसके सिवाय यह बात इतिहास प्रसिद्ध है कि सम्राट् चद्रगुप्त मौर्यने सीरियाके म्लेच्छराजा 'सिल्यूकस' की कन्यासे विवाह किया था। ये
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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