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________________ विवाह क्षेत्र- प्रकाश प० गजवरलालजीने इस पद्यका अनुवाद यो किया है "कोई-कोई महाकुलीन होनेपर भी बदसूरत होता है, दूसरा अकुलीन होनेपर भी वडा सुन्दर होता है, इसलिये कुलीन और सौभाग्यकी आपसमे कोई व्याप्ति नही, अर्थात् जो कुलीन हो वह सुन्दर ही हो और अकुलीन बदसूरत ही हो, यह कोई नियम नही ।। ५५ ।। " १४७ इसके सिवाय, जैनशास्त्रोमे भील कन्याओसे विवाहके स्पष्ट उदाहरण भी पाये जाते हैं, जिनमे से एक उदाहरण राजा उपश्रेणिकका लीजिये । ये राजा श्रोणिकके पिता थे । इन्हे एक वार किसी दुष्ट अश्वने ले जाकर भीलोकी पल्लीमे पटक दिया था । उस पल्लीके भील राजाने जब इन्हे दु खितावस्थामे देखा तो वह इन्हे अपने घर ले गया और उसने दवाई, भोजन पानादि - द्वारा सव तरहसे इनका उपचार किया । वहाँ ये उसकी 'तिलकसुन्दरी' नामकी पुत्रीपर आसक्त हो गये और उसके लिये इन्होंने याचना की । भील राजाने उपश्रोणिकसे अपनी पुत्रीके पुत्रको राज्य दिये जानेका वचन लेकर उसका विवाह उनके साथ कर दिया और फिर उन्हे राजगृह पहुँचा दिया । यथा उपश्रेणिको ( क१) वैरिनृपसोमदेव प्रेषितदुष्टाऽश्वेनोपश्रेणिको नीत्वा भिल्लपल्यां क्षिप्तो दुखितो भिल्लराजेन दृष्टो गृहमानीत उपचरित | तत्सुतां तिलकसुन्दरीमीक्षित्वा तां त ययाचे । एतस्या. सुत राजान करिष्यामीति भाषा नीत्वा परिणाय्य तेन राजगृहं प्रापितः । - गद्य श्रेणिकचरित्र ( देहली के नयेमदिरकी पुरानी जीणं प्रति ) इसी भील कन्यासे 'चिलातीय' नामका पुत्र उत्पन्न हुआ था, जिसे 'चिलातिपुत्र' भी कहते हैं । प्रतिज्ञानुसार इसीको राज्य दिया गया और इसने अन्तको जिन दीक्षा भी धारण की थी ।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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