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पाठक पद धारिक प्रसिध, श्री आनन्द निधानि ॥ ५ ॥ तसु पद अंबुज रज जिसी, विषा कुशल विनीत । लोक कहत जयचन्द मुनि, लिख्यौ ग्रंथ धरि प्रीत ॥ ६ ॥ चतुर गंभीर उदार चित, सुन्दर तनु सुकमार । नाम भगौतीदास यह, कयौ लिख्यौ म विचार ॥ ७ ॥ वेद गोत को प्रामान, श्रोस वंस सिग्दार । परगट सचियादास को, सत जानत संसार || ८ || रवि ससि गिरि दधि गिरा, राम नाम अधिकार ।
तो लौ पोधी रमिक मिलि, चिरंजीत्र रहु सार ॥ ६ इति श्री पचाख्यान ग्रन्थस्य पीठिका ।
लेखन काल-या । लिखितु। अमरदास गांव-धावड़ी माह संवत् १९३६ रा भादवा वदि १२ बुधवार, पुख नखत्रे पोथी मुहूंता टोडरमल वचनार्थं । प्रति-१, पत्र-६० । पंक्ति-१५ । अक्षर-२०, ६।। ४ ।।
२ पत्र-४३ । पंक्ति-२६ । अक्षर-२८, साइज ६|| XE|
अन्त-इति हितोपदेश अन्य ग्बालेरी भाषा लब्ध प्रकासन नाम पंचमां पाख्यानं ।
[स्थान-अभय जैन प्रन्थालय ] ( ४ ) पंचाख्यान भाषा ( गद्य ) श्रादि
अथ पंचाल्यानरी बा ५ भाषा लिख्यते ।
श्री महादेव जिन के प्रमादत माधु पुरुष हैं तिनकौं सकल कारिज की सिध होय, कैले हैं श्री महादेव जिनके माथे चंद्रमा की कला, गंगाजी के फेन की सी रेखा लागी है । अरू यह हितोपदेश सुनें ने पुरप मैमकिरत वचन मांहि प्रवीन होय । नीत विद्या जाने ।
___ इहां बिसनु-सरमा राजपुत्रन सूपासीस दीवी अरू कही तुमारी जय होय, मित्र को लाभ होय । ऐसौ सुनि गुरु के पाय लागा। अपने नीति मारग में सुख सू राज कियो।