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इति श्री लब्ध प्रकासन पंचम संत्र संपूर्ण । पंचाख्यान वारता संपूरणं ।
लेखन काल-संवत् १८५३ वर्ष मिति पोह वदि १२ दिने लिखतुं श्री विक्रमपुर मध्ये कौचर मुहता श्री लिछमणदासजी लिखायितं । श्रीस्तु । प्रति-गुटकाकार । पत्र-६० । पंक्ति-२४ । अक्षर-१५, साइज ७४१०
[स्थान-अभय जैन ग्रन्थालय ] ( ५ ) पंचाख्यान वार्तिक । रचयिता-यशोधीर । मादि
पंचाख्यानम्य शास्त्रस्य, भाषेयं क्रीयते शुभा । यशोधीरेय विदुषां, सर्व सर्व शास्त्र प्रकाशिका
यह हितोपदेश ग्रन्थ सुणे ते सर्व बालन में प्रवीण होई । सर्व बासन में विचित्र होई।
___ जो लौ श्री गोविन्दजी के वक्षस्थल में लिखमी रहे । जो लौ मेघ में विजुलता । जो लौ सुमेर दावानल मौं भूमंडल में विराजे । तो लौं श्री नारायण नामें करि कीर्तिकियो। लेखनकाल-संवत १७५०
[ स्थान-वृहद् ज्ञान भण्डार ] ( ६ ) राजनीति । पा १३० | श्री जसूराम कवि । १८१४ आसोज सुदी १, शुक्रवार ।
श्रपर अगम अपार गति, किन पार न पाइ । सो मोनू दीजै सकति, जै जै जै जगराय ॥ १ ॥
छप्पय
बरनी उज्जल बरन सरन जग असरन सरनी । करनी करुना करन तरन सब तारन तारनी ॥ सिर पर धरनी छत्र भरन सुष संपत मरनी । भरनी अमृत झरन हरन दुष दारिद्र हरनी ॥