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स्वर ते नर भाषा कही, जो समझ सब कोय । ताके ज्ञान प्रताप ते, जाट पंडित होय ॥
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कवी उमेद सुखपाय के, दिन निस या सुख देत । राजनीत भाषा रची, विनयसिंघ नृप हेत ॥ ११ ॥ मंवत् हग रिष वसु ससी, मास पोष मध्यान |
सूरबार तिथ सप्तमी, पूरण मन्थ प्रमाण ॥ १२२ ॥ इति श्री बारहट उमेदराम कुन भाषा चाणिक्य संपूर्णम् । पत्र ३॥, पं० १८, श्र०५३, ले० २० शताब्दी।
स्थान-गोविंद पुस्तकालय ] (३) पंचाख्यान | काल-सं० (१८) ८०, मा० सु० ६ गुन । मेड़ता श्रादि
प्रथम चार पत्र न होने से प्रारम्भ त्रुटित है ।
परदेश में और सरब बात भली पै मब जाति देख सकें नहीं । जबलौं घर में पेट भरे, तब लौं बाहर निकरिये नही। परदेश को रहनो अति कठिन है। तेरी दृष्ट पत्नी तो गई और तू मकाम है। नयो व्याह करि जात कह्यो है। कुवां को पानी । बड़ की छाया। तुरत बिलोवना हो घृत । वीर को भोजन । बाल स्त्री। ये प्राण के पोषक हैं। अवस्था परमाग कारज कीजे तामें दोष नाही । यह उपदेश सुनि मगर अपने घर चल्यो ग्रह मांड्यौ। मनोरथ भयो। हां विसन शर्मा राज पुत्रिणि म कहीं। अमी विध नीति की है मो काहुको परपंच देखि ठगाइये नहीं। अरु तुम्हारी जै कल्याण होछ । निकंटक राज होहु । इति श्री हितोपदेश पंचान्यान नाम्ने प्रन्थे लब्ध प्रकामन नाम. पंचमों तंत्र ।
समंत असीये माघ सुदि, तिथि नौमि गुरु होहि । मारुधर पुर मेड़ते, गच्छ खरतर हित जोहि ॥ ४ ॥ पंडित बहुत प्रवीण अनि, लायक तपसी जानि ।