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अहे निरा कथा गंभीरा । । अगन मोम सुं चालकर अोछा, मैं अवगति का ऐधी । पणमे तरक करू तलवाना चौहौरि नर राखी बांधी ।
कहै कबीरा मसतफकीरा लीया सार फटकाई । .
निरमै झंडा जरि को भूषण संधै संघ मिलाई ॥ प्रति-छोटीसी गुटका पत्र ६ से १६, पं०६, अ० १६, साइज ४|| ३
[ स्थान-अनूप संस्कृत पुस्तकालय ]