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________________ (४६ ) (१३) समनजी की परची पादि साधू पाये भागमतें पुहमी किया सोन । ठौर ठौर बूझत फिरत समन का घर कोन ॥ १ ॥ प्रति-पत्र २ अपूर्ण, पय ४७ तक [ स्थान-स्वामी नरोत्तमदासजी के संग्रह से ] (१४) साखी मण्य नाथ ओर हमारी रक्षा कार सोभा भी पावेगा पर हमारी कीर्ति गायेगा जो ए हमारा वालिक है। अब उनका ए कैसे त्याग करेगा। जो इसमें किहो का कमान के उनका त्याग कर दिया. फिर निंदा तो इसको नहीं वपती, एक तो हम निंदा द्वारा सोभा न पाएगा, और लोक भी इमको भला न कहेंगे और पाव भी इसको भारी होवेगा। ब्रह्म तो श्राप सर्व जाण प्रवीन हैं, ऐसे खेद में संसार को रचकै फिर प्रवेश क्यों किया, जिसे संसार किये जन्म मणे दुःख हैं और रोग, दोस शरीर की पीड़ा के दुख है और अनेक प्रकार के हुए है । पत्र ३५ से ७३ त्रुटित, मध्यपत्र पंक्ति १२ अक्षर ३० [ विद्याभवन, रतन नगर ] (१५) ज्ञानबत्तीसी-रचयिता-कधीरजी श्रादि अथ ज्ञान बत्तीसी लिख्यते । अवधू मेरा राम कबीरा उदभुत अजर पायाला पीया ।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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