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________________ (ङ) वेदान्त (१) अवधू कीरति । अथ अवधू कीरति लिख्यते दोहा भूव वसु निश्चल सदा, बंधू माव दर जाव । स्कंध रूप जो देखियह, पुदगल तपउ द्विमाव ॥ १॥ जीव मुलक्षण हो मो प्रति मासियो अाज परिगह परतणा हो, तासों को नहीं काज कोई काज नाही परहु सेती सदा अइसौ जानियह । चैतन्य रूप अनूप निज धन तास सौ सुख मानियह ॥ पिय पुत्र बंधव सयल परियण पथिक संगी पेखणा । सम स्यउं चरित दैरहइ जीव सुलक्षणा ॥ २ ॥ असण वस्तु जु परिणवन सरण सहाइ न कोय । अपनी अपनी सकति के, सवै विलासी जोय ॥ ३ ॥ लेखनकाल-१८वीं शताब्दी प्रति-पत्र १ । पंक्ति १८ । अक्षर ४८ से ५८१ साइज १०४४।। विशेष-केवल प्रथम पत्र प्राप्त है अत: ग्रंथ अधूरा रह गया व कर्ता का नाम भी अज्ञात है। [स्थान-अभय जैन ग्रंथालय ]]
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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