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प्रति-पत्र-।।। पंक्ति-११ । अक्षर-३४ से ४० । साईज १०॥४५
[स्थान-अभय जैन मन्थालय, बीकानेर ] (8) योग चूडामणि । पद्य १८५ । रचयिता-गोरखनाथ ।
अथ गोरखनाथजी कृत योग चूडामणि लिखसे
आदि
सुनजो माई सनजो बाप, सूत निरंजन पापो श्राप । सून्य के भये अस्थीर, निहचल जोगिन्द्र गहर गंमीर ॥ १ ॥ अकू चंकू चिया विगसिया, पुहासिधरि लागि
__उठि लागि गधूवा । कहै गोरखनाथ धुवा ऐसा घडिका, परचा जाणे प्राण ॥ २ ॥
अन्त
पंथ चालै तूट, तन छीजै तन जाइ ।
काया थी कल्लु अागम बतावै, तिसकी मटौ माह ॥ ८५ ॥ इति गोरखनाथ की सार्ख समाप्ता । प्रति-पत्र- ११ । पंक्ति १३ । अक्षर ३० करीब । साइज १०i x५ विशेष-कई पद्यों का भाव बेड़ा ही सुंदर है। यथा
गोरख कहै सुणो रे अवध, जगमे इसि विधि रहणां । अख्यिा देखवा काना मुणिमा, मुखि करि कछुन कहणां ॥४६॥
दंडी सोई जु पापा उंद, धावत जाती मनसा खंडै । पांच इंद्री का मरदै मान, सो दंडी कहियो तत्व समान ॥५०॥
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उनमन रहिवा भेद न कहिवा, बोलिया अमृत वाणी । भागिला आग होगा तो, श्राप होइबा पाणी ॥४७॥
[स्थान-अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर, ]