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________________ (१०) अथ ग्रन्थ श्रवंगसार लिख्यते-- कुंडलियासतगुर पुझि परि महरि करि, बगसो बुधि विचार । श्रवंगसार एह पन्थ जो, ताको करूं उचार । ताको कर्म उचार सतसिव साखि ल्याऊ । उफति अकति परमाण ओर अति पास सुनाऊ । नवलराम सरणै सदा, वृम पद हिरदै धारि । सतगुर मुझि पर महरि कर, वगसो बुधि विचार ॥ खंडसंत विचार ब्रह्म गुरु संत निरूपण, पयं ७८ गुरु मिलाप महिमा शब्द १५८ गुरु लस्वरण निरूपण शब्द २६२ १३ वाँ उसमें भक्ति निरूपण शब्द १०६८२ रचने दशम प्रनि-पत्र ३८ अपूर्ण । पंक्ति १७ । अनर ४८ से ५४ [स्थान-अनृप संस्कृत पुस्तकालय (११) सन्तवाणी संग्रह सूची(१) गोरग्वनाथजी की शब्दो २२४ । (२) दयालजी हरि पुरसजी की साखी- ३१८ अंग, ३५ श्लोक, ४ कुड लिया, १११ अंग, २५ चंद्रायणा, ६४ अंग, १४ कवित्त, ६ पद, २०६ राग, २२ रेखता पद, ८ राग, १ कडरया, १३१ राग, २ पद रेखता कडरवा, सर्व ३१७, राग २४, ग्रंथ ४७ । (३) श्री स्वामीजी हरिरामदासजी की बाणी-दहा-कुण्डलिया, छंद, चौपई, रेखता पद, अरिल्ल सर्व ८४६ । महमा का मनहर छंद १ ॥ (४) श्री स्वामीजी श्रीआत्माराम जी की कुंडलिया, ३३ चंद्रायणा, ७ रेखता, ४ शब्दी, २ पद, १४ मनहर, १ ईदव, २ साखी, १३ गौपई, सर्व ७७१ ग्रंथ, अवंगसार का शब्द । ३८६३ । विध्यन ४१ ।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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