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________________ (३८) नमो सर्वव्यापीक, थूल सूधिम सब माही । नमो जगत प्राधार, नमो जगदीश गुसाई ॥ सचराचर मरपूर हो, घाट बांधि नहिं कोय । मोहनदास वन्दन करे, सदा पाणंद घन तोय ॥१॥ झूठी छोडी खेंचा ताणी, मोहन करों हरी सों नेह ॥ ४३ ॥ लिखितं रामजीनाथ पठनार्थ । प्रति- गुटकाकार । पत्र १५१ । पंक्ति है । अक्षर १६ । साईज ६४४ । विशेष- अंग, शब्द, सवैया, रेखता, श्रादि सबका जोड २००० लिखा है। [स्थान- स्वामी नरोत्तमदासजी का संग्रह । ] (८) मोह विवेक युद्ध । रचयिता- लालदास । रचनाकाल-संयन १७६७ से पूर्व । फागुनसुदी ६। प्रादि श्रादि अन्त अमृत ए स्वामी, एई अविगत है अंतरजामी । सकल सहज सम सदा प्रमान, सुख सागर सोई साध समान | सकता साथ गुरां के पग पगैं, रामचरत हिरदै पर धरौं । गुरु परमानंद को सिर नाऊं, निर्मल बुद्धि दै हरि गुन गाऊं ॥६॥ मन क्रम वचन प्रथम गुरु, वंदौं कल्पदत्त अक संत ।। सुफ नारद के पग परौं, प्रगटै बुद्धि अनन्त ॥७॥ तुम ही दीन दयानिधि रामु, होहु प्रसन्न प्रेम मुखधाम । होहु प्रसन्न देहु मत सार, जानों मोह विवेक विचार ॥ ८ ॥ अन्त लालदास परकास रस, सफल भये सब काज । विष्णु भक्ति आनंद मस्यौ, अति विवेक कै राजि । तब लगु जोगी जगत गुरु, जब लग रहै उदास । सब जोगी श्रासा लग्यौ, जगगुरु जोगीदास ॥ इति मोह विवेक का जुद्ध संपूर्ण ।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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