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सुखमनी समाप्तम् । लेखनकाल १८ वीं शताब्दी । प्रति-गुटकाकार-पत्र ३५। पंक्ति १५, १६॥ अक्षर २५ साइज ४
[स्थान-अभय जैन प्रन्थालय, बीकानेर ] (६) पद-संग्रह । इसमें कबीर, मोरां, सेवादास, नामदेव, जनहरिदास, तुलसी, सूर, साधूराम, नंददास, माधोदास, आदि अनेक कवियों के पदों का विशाल संग्रह है। पत्र १८६ तक विविध कवियों के तथा उसके बाद केवल रामचरणजी के दो पद हैं। उनका एक पद नीचे दिया जाता हैपादि
मज रे मन राम निरंजण कू', जन्म मरण दुख भेजण कु। अर्धनाम मिल सादर पायो रामचन्द्र दल त्यारन कों ॥१॥ जल दृबत गज के फंद काटे, अजामेल अध जाग्न । राम कहत गिनका निस्तारी, जुरा जग अधम 'उधारन कुं ।। ऊंच नीच को भांति, न राखे । शरणा की प्रतिपालन कुं। रामचरण हरि ऐसे दीरघ,
श्रीगुण घणां निवारण कु॥ लेखनकाल-२० वीं शताब्दी । प्रति-पत्र २३६ अपूर्ण । पंक्ति १२ । अक्षर ४० । साइज १०x४॥
[ स्थान-स्वामी नरोत्तमदासजी का संग्रह ] (७) मोहनदासजी की वाणी । रचयिता- मोहनदास ।
लेखनकान- संवत १८८२, माघ सुदि, ४ शुक । आदि
नमो निरंजनराय, नमो देवन (के ) देवा । निराकार निर्लेप, नमो अलख अमेवा ॥