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(घ) सन्त-साहित्य ( १ ) कबीर गोरख के पदों पर टीका ।
लेखन-काल १६ वीं शताब्दी।
सहजै मानसी भजन द्वंद रहित फल पाप पुन्न फूल कामनान्तर प्राण तत्वरूप है रह्या । गुण उदै नहीं। पल्लव पर कीरति नहीं । आहे अंकुर नहीं। बीज वासना नहीं। परगट परस्या ब्रह्म गुर गमतें गुरु पारसादि ब्रह्म अग्नि पर जारी । पुजारी । प्रकीरति । सासे सूर मनोपवन । तानी सोलि दूर कहिये । इनते आगे जोग कहिये । जुगतारी आत्मा परमात्मा जुगल सोई जोग तारी ॥ १ ॥ प्रति- पत्र ४७ । पंक्ति १५ से १६ । अक्षर ३६ । श्राकार ॥ ११+६ ॥
[स्थान- स्वामी नरोत्तमदास जी का संग्रह, ] ( २ ) कबीर जी का ज्ञानतिलक । रचयिता-रामानन्द । श्रादि
ॐकार अवगत पुरुसोत्तम निजसार, रामनाम मजि उतरो पार । ॐगुरु रामानंदजी नीमानंदजी विष्णुश्यामजी माधवाचार्यजी । चार दिसा चारों गुरुमाई, चारों न्ये चार संप्रदाय चलाई । ॐकोन डारते मूल बनाया, कोन सब्द प्रस्थूल बनाया । ॐ डार ते मूल बनाया, सोहं सब्द ते अस्थूल बनाया ।
भक्ति दिलावर उपजी ल्याये गुरु रामानंद । दास कबीर ने प्रगट किया सप्तदीप नवखंड ।।