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________________ छ से महासिंगारी नारद से वीनधारी रंभासी निरतकारी मुक से पदायवे । वैकुंठ निवासी श्राप मयो ब्रजवासी स्याम गधिका रमन कवि परन सोइ गाइवौ । सुदामा चरित्र चिंतामणि सब सावधान कंठ के पियार राखि साधनि सुनायवौ ॥ इति श्री वीरबल कृत सुदामा चरित्र संपूर्ण । प्रति-गुटकाकार । पत्र २३ । १० १३ । अक्षर ११ साइज ४॥४६ । [स्थान- अनूपसंस्कृत पुस्तकालय, बीकानेर] (१५) सुदामाचरित कहत त्रीया समुझाई दीनको मधुहरी ॥ टेक द्वारामतिलों जात कहा पीय तुमरो लागे । जाके हरि से बंध कहा धरि धरकन माग । २ । दीनबन्धु बिस्दावली प्रगट इह कलिवाल । कवलानन्द मुदित चित गावै, कीरति मदनगोपाल । ५८ | इति सुदामा चरित समाप्त पत्र ६५ से १०० । [स्थान- अनूप संस्कृत पुस्तकालय, बीकानेर ] (१६) सुदामाजी की ककाबत्तीसी । आदि- पद्य २१ से क्षक्षा छूटा जो दिप आदि नहीं थे तो चरन सरन सद्गुरु की रहियो । नांव मधुरी रस पिया सुजान जसु गुर वास नहीं होय पनाना । इति श्रीसुदामाजी की ककाबत्तीसी । आदि कका कहि जुग नाम उधारा, प्रभु हमरो मत्र उतारो पारा । साधु संगति करि हरि रस पीजै, जीवा जन्म, सफल करि लीजै । [स्थान- अनूप संस्कृत पुस्तकालय, ई.कानेर ]
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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