SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३५) इति रामानंदजी का कबीरजी का शानतिलक संपूर्ण । लेखनकाल-लिखितं गंगादास। जैसा देख्या तैसा लिख्या छै । मम दोषो न दीयते। प्रति-पन्न । | पंक्ति ११ । अक्षर २६ । आकार Ex५| विशेष- गुरु चेला के प्रश्नोत्तर संवाद के रूप में है। आदि अन्त का १-१ पत्र रिक्त । [स्थान- अभय जैन पुस्तकालय] ( ३ ) जैमल ग्रन्थ संग्रह। रचयिता-जैमल । लेखनकाल-१८ वीं शताब्दी । श्रादि आदि के पत्र नहीं मिले हैं। मध्य वैरागी को रूप धरि, वैरागिणी चालै लार । जैमल उनकू गुरु करे, अन्ध सबै संसार ॥ २५ ॥ जोग जहां जोर नहीं, भगति जहाँ मग नाहि । श्रविगति प्रापै पाप है, जैमल हिरदा माहि ॥ २६ ॥ का करि भया निरंजनि, हमकू कहि समझाहि । गांडा चूखे रस पीचे,भूखा है तब खाहि ।। ८१ ॥ क्यू' करि भया निरंजनि, कोण समरणि सार । पेट भरण के कारण, रोकि रह्या पर द्वार ॥ २ ॥ अन्त अन्त के पत्र भी प्राप्त नहीं हुए । प्रति-पत्र १२६ । पंक्ति १७ । अक्षर ३२ । श्राकार ७/xशा, विशेष-कुछ अंगों के नाम इस प्रकार हैं सुमिरन अंग, चौपदै, निवाण पदै,भगति वृदावली, विधान पदै, सूरात को छंद, सीतमहातम को अंग श्रादि । [ स्थान-अभय जैन प्रन्यालय ]
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy