________________
जाकै दरबारि कवि नस न्यास बालमीक हा हा हुं हुं गाइन कैसे के रिभाइवौं । रुद्रप्तेन महासिगास नारद जैनधारी रंभासी निरतकारी मुफ सौं पटाहवौं । बैंकण्ठ निवासी अब भयौ घृजवासी ध्यानु हिरदै में प्रकासी स्याम निसि दिन गाइवौ । सुदामा चरित्र चिंतामनि सामी सावधान
कंठ ते खलीता राखि साधन सुनाइबौ । इति श्री सुदामा चरित्र सवईया पद्य संपूर्ण समान । प्रति- पत्र ६ । पं०६। अक्षर ४४ ।
[स्थान-मोतीचन्दजी खजानची संग्रह ] (१४ ) सुदामा चरित्र
अथ सुदामा चरित्र वीरबलकृत लिख्यते । आदि
कवित्त माधौजी के गुन गाय गाय सुख पाय पाय और नि सुनाय
हंस नागहू से हारे हैं। महिमा न जानै सुफ नारद श्री बालमोक ताके
कहिब के कौन मानस विचारे हैं । जैसी मति मेरी कथा सुनी है पुरान करि ज्यौकर सुदामा तम द्वारिका सिधारे हैं। तंदुल ले चले के हैं हरि जू सो मिले पुनि कैसे फिरि पाए निद्ध दारिद विडारे हैं।
मन्त
जाके दरबार कवि ब्रह्म व्यास नालमीकि कहाँ हा हा हूह गायत सु कैसे के रिझायदें ।