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________________ इति भी युगल विलास मन्थ महाराजाधिराज प्रथीसिंघजी कृत संपूर्ण । ले संवत् १८४६ मिति महाशुक्ल एकादश्यां तिथौ लिखितं । पं०अमरविलासेन । श्री कुशनगढ़ मध्ये रा० श्री जिनकुशलजी प्रसादात् । [प्रतिलिपि-अभयजैनग्रन्थालय ] (७) बारहखडी-रचयिता-मस्तरामजी । अथ-मस्तराम की बारहखडी लिख्यते । धादि दोहा कका करना करत राजकामनी, धरत कंत की त्रास । मन तन चात्रिग ज्यौ रदै, श्री करण मिलन की श्रास । कवित्त रेखता चाल कका कवर कान के हाथ में बांसुरी रे खडा जमुना तट बजावता था । पडी गेद जो दहम करि पड्या काली नाग कुनाथ करि ल्यावता था। संत महंत जोगेश्वर ध्यान धरै, वाका अंत कोई नहीं पावता था । मसतराम जालिम मया कंस कारे खडा कुज गेली बिचि गावता था। हा हा हरि नांव की बात अगाध है रे संत बिना बुधि नाहीं श्रावै । गोपाल ज्यौ नंद के लालजी सू, बारू बार गुलाम की मेरे पावै । मैं तो अतिरा को बल नाहि जानु, और बुधि नहीं कृष्ण नाव जावै । मसतराम गुलामै ज्यो श्राप ही को बुधि दीजिये तो चरनो चितरल्या रहौ । ३४ । इति बारहखडी संपूर्ण । प्रति-गुटकाकार-पत्र ५, ६-१८, साइज मा ६ [स्थान-अनूप संस्कृत पुस्तकालय] (८) बिहार मंजरी ( पद ) रचयिता-सूरज
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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