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दूलह लाल गोपाल लखि, दुलहिन बाल रसाल । पीपल पल पल नाम लहि, अगल हरे जंजाल ॥ राधा नंदकुमार कौं, सुमिरन को दिन रैन ।
ताते सष संकट टरै, चित उपजै अति चैन ॥ प्रति-गुटकाकार-पत्र ५६, पंक्ति १३, अक्षर १४, साइज ५॥ x ६"
विशेष-पद्यों की संख्या का अंक २३ के बाद लगा हुआ नहीं है। समाप्ति वाक्य भी नहीं है। अतः अपूर्ण मालूम पड़ता है। नायक नायिकाओं का वर्णन भी है।
स्थान-अनूप संस्कृल पुस्तकालय, बीकानेर इस ग्रन्थ की एक प्रनि खटरतर प्राचार्य शाखा के भंडार मे प्राप्त हुई है जो पूरी है। मिलाने पर विदित हुआ कि उसों उपयुक्त आदि एवं अंत का पहला पच नहीं है, कहीं २ पाठ भेद भी है। अन्त के दोहे से पूर्व एक छप्पय है और पीछे एक दोहा ओर है जिनसे ग्रन्थकार व रचनाकाल पर प्रकाश पड़ता है. अतः उन्हें यहाँ दिये जारहे हैं:
छप्पय ब्रज भुव करत विलास रास रस रसिक विहारिय । सीस मुकट छवि देत श्रवन कुंडल दुति मारिय । गलि मोतिन की माल, पीत पर निपट जुगल छबि । नीकी बाजे यह रूप धारि हिय मैं सदा, जातै सब कारज सरै । सुभ अगल चरण नृप मांन संत, प्रथीसिंघ
• प्रणपति करै ।। ७४ ॥ ७५ वां उपर के अंत वाला है।
मुर तक नम बम ससि बरस, भादौ सुदि तिथ गार । पूरन युगंल-विलास किय, माय युत मर गुरुवार || ७६ ॥