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________________ विधन हरन गनपति हिम नाऊँ गरिनंद जगवंद चंद इत सिंधुर बदन निरखि सुख पाऊं । सजि सुगंध उपचार अमित गति निरमल सलिल उपरिचन्हबाऊं। श्री सिरवार शिरोमणि सूरज पद पंकज चित हित नित लाऊं । संत पुराण निगम बागम सब नेति नेति कहि गावें । शिव ब्रह्मादि सकल के कर्ता भर्ता अपना । करहु रूपा गुण गण नित पाऊँ सूरज उगणि सवायौ । इति श्री सूरज सिरदार बिहार मंजरी नाम्ने अन्थे भक्त पक्षवर्णनं नाम सप्तम स्तबकः समाप्तः । दोहा संवत् राखि शशि निधि ...."माघ मास तम पक्षा । पंचमि गुरुबास विमल..........."पद सुददा ॥ १ ॥ प्रनि-गुटकाकार-पत्र ६१, पं० १५, अ० १२, माइज ६x६ll [स्थान-अनूप संस्कृत पुस्तकालय ] (6) राधाकृष्ण विलास ( दान लीला )। पद्य ६४ रचयिता-माधोराम । रचनाकाल संवत् १७८४ श्राश्विन । अथ राधाकृष्ण विलास दानलीला लिख्यते । पादि दोहा प्रकृति पुरुष शिव सकत है, भेद रटत निरधार । बहै प्रकृति वृषमान न्यू, पुरुष सुनंद कुमार ॥१॥
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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