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ओ गादै सोखे उनै, गोपी कृष्ण सनेह ।
प्रीति परस्पर प्रति बढे, उपजै हरि पद नह ॥ ३७॥ स्वामी नारायणदास लिखितम्। प्रति-गुटकाकार । पत्र ५। पंक्ति १० । अक्षर १२ श्राकार ६४॥
[स्थान-अभय जैन ग्रन्थालय ] (५) जन्म लीला-रचयिता-कल्यानजी । आदि
साधु सध की सुनो परीश्रित सकल देव मुनि साखी हो । कालिंदी के निकट श्रत इक मधुपुरी नगर रसाला । कालनेमु उग्रसेन बस कुल उपज्यो कंस भुवाला ।
अन्त
नाचत महर मऊण मनु कीनै मौ पार बजावै तारी ।
दास कल्यान श्याम गोकुल में प्रगट्यो गर्व पहारी ॥ इति श्री जन्मलीला संपूर्ण। प्रति-पत्र १५,
[ स्थान-अनूप सस्कृत पुस्तकालय ] ( ६ ) जुगल विलास पद्य-७६ । रचयिता पीथन ( पृथ्वीसिंघ) २० सं० १८०
अथ जुगल-विलास लिख्यते । . आदि
सुचि रूचि मन च कर्म सों, जयतु यदुपति जीव । प्रमु को नाम पीयूस रस, पीथल नित प्रति पीव ॥ १ ॥ श्रीसरसति गनपति सदा, दीजे बुद्धि बहु ज्ञान । कर जोरै वीनति करौं, सिरं नाऊं धरि भ्यान ॥ २॥ नंदलाल वृषमानुजा, ब्रज कीने रस रास । धुद्धि माफक बस्नौं वही, जाहर जुगए ॥३॥
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