________________
तिथदसमी चंद्रावार सौ ग्रंथ संपूरण । ल संवत् १६२८ काति फागण यदि ३० बार बुधवार श्रीरन्तु । पत्र ३६२ । पं० ३४ । अक्षर ३६ । साइज १६॥x१२॥
[स्थान- अनूपसंस्कृत पुस्तकालय ] ( ११ ) भगवद्गीता भाषा टीका पद्यानुवाद । र०- मलूकदास लाहौरी सं० १५५१- माघ १० २ रवि । आदि
नमो निरंजन त्रिगुण पर, गुणनिधि गोविंदराय । नमो गुरूडधुज कमल नैन धनस्याम जदुराय । नमो नमो गुरुदेवको पुनि पुनि बारंबार । नमो नमो सब संत को, जिन घर वसत मुरार । श्रीमग्व जो गीता कही. अर्जुन सौं समझाय । ताकी भाखा जथामति कहो, कव्यवहरि गुनगाय । तातपर्जी या ग्रन्थ को, जानन श्री भगवान । श्लोक श्लोक का अगार्थ, कहीं सनो जुस) सजान । गीता के श्लोक सब, से सात अरु इक जान । श्रीमुख भाषौ पांचसौ, अर चौहत्तर श्रान । अर्जुन असी दोह कहे, संजएच चालिस तीन । एक और कहो दो इकु, मिलई धृतराष्ट्र परवीन | ४ संवत् सत्रह मैं धरष, इकावन रविवार ।। माधो दुतिया कृष्णापध, भाषा मति अनुसार । ५ कही मलूक के दास, दास लाहौरी निजु नाम ।। जादौ सुत छत्री वरन, रसना पावन काम । ६ अछर घरबट होय जो, ले हे संत सुधार । सब संतनके चरणपर, लाहोरी बलिहार । ७
इति थीभगवद्गीता भाषा टीका समाप्ता । संवत् १७८६ वर्षे मिती काती सुदि ११ दिने सोमवारे पं० प्रवर हर्षवल्लम