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छप्पय खंडापो निजधाम, संत रामा विसालवर । वखतराम तहि सिष्य, मक्ति जहि पर मंत्र उर । ता सिष्य तुस्सीदास, विसद मुइ गुन के प्रागर । जन ठूलै सिख जाहि ताहि को कहियत अनुचर । तहि चग्न कज रजदास लखि, सुदृढ़ यंत्र शिव प्यान घर । वर प्रन्थ येह पांडव विजय, दास मलूक बस्लाण कर ।
दोहा
संवत् उगणीसो सरस तेरौ वरष निहार । चैत्रमास तिथ दस्मि सद वर मृगांक है वार । मरु देस के बीच में, नगर जोधपुर जान | भयौ संपूरन ग्रन्थ यह पंडव विजय प्रमान ॥
मोरठा अष्टवीस हजार माग्थ की टोकाकी अनुपश्लोक उचार । संख्या पांडव विजय की मनहर भादस मान ! श्री विराट है उधोग वर भीष्म द्रोण कर्ण सल्य सोप्तिक
लखानिये । प्रव्व-मांतिक अनुमासन अस्वमेध आश्रमवास मुद्वल ता महाप्रस्त जानिये ।
श्रगारोहण सार कमा श्रष्ठादशाह प्रव सुचत विसाल पंड विजय प्रमानिये । अष्टवीस हज़र है तास पासै जानियत अनुष्टप श्लोक सष संख्या बखानिये ।
इति श्रीश्रीमत्पुलोत्तमचरणारविंद कृपामकरन्द बिन्दुः प्रोन्मीलन विवेक नै मुझ मलूकदास कृत महा भारथ महाधवल पंडवविजय सरोज कृष्ण प्रभाकरे अष्टादसमो गारोहण प्रव समासिरस्तु । १८।
अक्षर श्लोक ८ । उभय सत बोत्तर लखहु श्लोक अनुष्टु (प) विधान, भूगारोहण प्रव यह (२७२)
इति श्रीग्रन्थ पंडव विजय सरोज कृष्णप्रभाकरे मलूकदास हित भाषणं जम्बूद्वीपे भरथखंडे मुरघरदेशे ना जोधपुर मध्ये संवत् १६ वरष तेरा, मास चैत्र