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किसी पर खार वारा मध्ये ।
प्रति-गुटकाकार पत्र ३५ पं० १३ म० ३४ (इसी गुटके में हिन्दी भाषा में भोतल पुराण भी गद्य में है)
[स्थान-मोतीचंद्रजी खजानची संग्रह ] (१२) भागवत भाषा। रचयिता-हरिवल्लभ । ले० सं० १८५३ आदि
श्री भागवत भाषा हरिवल्लभ कृत लिख्यतेबायतु दियौ किमौर , कारजु भाषा में रची । (स) हरिजसु गावन काज, मोह मति है लची ॥ प्रभु कौं करि प्रनाम, भगति तामैं खची । मव लूटन के काज, जु बलभ-यौं रची ॥१॥ प्रथमहिं प्रथम स्कंद, जु मनमैं श्रानि कै । श्लोक समान जू अर्थ, कीयौ मैं बानि कै ॥ र हंसत (बह) बादी किसोर मलौ बहु मानिकै । हरिवलम मो मौत, सुनायौ पानि के ॥२॥ अमृत समान जुभक्ति रस, वल्लभ कीन्हौं मानि । हरख सुनि जु किसोरजु, लीन्हो बहु सुख मानि ॥ ३ ॥ मुख पायौ जु किसोर छ, मागवत जसु मनि कोना। हरिवल्लभ भाषा रची, श्राप बुधि उनमान ॥ ४ ॥
ताते है करि एक मन, भगति नाथ भगवान ।
नितही मुनिये पूजिये, कहिये, कहिये गुन धरि ध्यान ॥१२॥
चौ० कर्मग्रन्ध बंथन निरखरै । को हरजस सौं प्रीति न करे । इति श्रीभागवत महापुराणे एकादश स्कंध भाषा टीका संपूर्ण समाप्तम् ।
लेखनकाल संवत् १८५३का .....मासे कृष्णपक्षे तिथौ षष्टभ्यां ॥६॥श्रादित्यबारे । लिख्यसं व्यास जै किसन पोकरण शुभं भवतु । विसनोई साध गंगाराम ताजेजी का शिष्य ।