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इति श्रीनासकेतोपाख्याने नासकेत ऋषि संवादे जमपुरो धर्म अधर्म विचारण যুমায়ুন ফকি জন্ম নমুনার সাহায্য | সখ স্কী ?
प्रति-१पत्र१से १४१ । पंक्ति १३ | अक्षर १७। चाकार III सं०१७६३ ई०
प्रति-२ पत्र ५ सं ५६ । श्राकार sixy
संवत् १७६४ पोष वदी । पुस्तक छांगाणी मुरलीधरेण । मूधडा नथमल पुत्र वखतमल वाचनार्थ ।
[स्थान- स्वामी नरोत्तमदासजी का संग्रह ] (१०) पाण्डव विजय-मलूगादास सं० १६१३ चैःशु० १० इसे जोधपुर
अथ पाण्डव विजय सरोज कृष्ण प्रभाकर लिख्यते । पादि
ब्रह्म निवाण, अगम अनादि अनूपं । निराकार निरलेप सदा, श्रानंद सरुपं । जहि विभु सत्य प्रकाम, चंद रवि सबहि प्रकासत । सकल धष्ठि प्राधार विस्वति न तै आभासत । सुख सिंधु सदा ईस्वर सुखद, विधन हरन मंगल करन । अनमंत सदा प्रेरक सकल, करहु कृपा असरन सरन ।
दोहा गननायक के नाम से विधन होत सब नास । काहु अनुग्रह मोहिप (ह) सब मंगल की रास ।
वैण सगाई मात्र रस, कछु न ताहि मध जान । खिमा करहु कविजन सकल, भूहि तुछि बुद्धि पिधान । अस्टमास के श्रासरे, धनता भय विनीत । ये ते माहि प्रन्थ यह, प्रण मयौ प्रतीत । ग्वैडापो निज धाम है रामो संत धीर । सिख धाल (क्याल ) ताके सघर, महामुख्य की सीर । छरल शिष्य पूरन मयी, तहि सिख उरजनदास । जाहि समै यह ग्रन्थ मौ, पांडव विजय प्रकारा ।