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________________ इति श्रीपापुराणे, उत्तर खडे, उमा महेश्वर संवादे, नाजर प्रानंदाम कती गीता महातम अष्टादशोभ्याय ॥ लेखनकाल-१ संवत् १८०७ वर्षे प्रासु सुदि ११ । लिपिकर्ता-परमानंद भोजरवास मध्ये। २ सं० १८२१ आश्विन वदी १० गुलालचंद्रेण सांडवा मध्ये । प्रति-१ गुटकाकार-पत्र ४०, पंक्ति १६, अक्षर ३०, थाकार ||४६ २ गुटकाकार-पत्र ४३, पंक्ति १६ से १८, अक्षर २४, श्राकार ६x६ [ स्थान-अभय जैन ग्रंथालय । ] (७ ) गीता सुबोध प्रकाशिनी भाषाटीका । रचयिता-जयतराम । श्रादि प्रथम सीस गुरु चरननि नाऊं, सियाराम पद पंकज ध्याऊ । दौं वानी अरु गणनायक, मम उर बसौ अमल बुद्धि दायक ॥ १ ॥ श्रीगुरु को प्राझा मई, जयतराम उरधारि । कहीं सुबोध प्रकाशिनी, श्रीधर के अनुसारि ॥ २ ॥ ( महातम सहित, मूल श्लोक, टीका भापापद्य,क्वचित् गण, सम्बन्ध स्पष्ट करने के लिए।) याको पद्मपुराण के, माही है विस्तार । जयतराम संक्षेप करि, कही ज माषा सार ॥ ४२ ॥ जो कछु मैं घट बधि कयौ, मेरी मति अनुसार । सब संतन सौ बीनती, नीको लेहु सुधारि ॥ ४३ ॥ श्री वृदावन पुलन मधि, वास हमारी सोई । जहां जैत माषा करि, सुनत सबै सुख होई ॥ रासस्थली याही कू कहिये, प्रेम पीठ नाम सो लहिये । शान गूदरी प्रसिद्ध मानो, ताके मधि स्थान सुजानौ ।। प्रति-गुटकाकार, पत्र २७३, पंक्ति १६-२०, अक्षर १२ [ स्थान-नरोत्तमदासजी स्वामी का संग्रह ]
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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