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________________ (२३३ ) अन्त कासायन से सरन गहि, ये सुख पायो वृन्द । सालहोत्र मह देखि के, वरनत चेतनचंद ॥ ६ ॥ श्री कुशलेश नरेश हित, नित चित चाह .. .. अश्व बिनोदो प्रथ यह, सार विचार कयो ॥ ७ ॥ मूल मानसार बासु मधु पर समग कर साज । मुखन फूल फलियो सदा, कुशलसिंह महाराज ॥ ८ ॥ अथ माल होत्र जथामति वरणन दोहाविजय करन अरु जय करन, गावत चारी वेद । नकल कहै सहदेव सो, रवि बाहन को भंद्र || E || चुरहा फाट गौपानाथ कानकुबीज मे भये सनाय । तिनके सुन चायो अधिकाई इदजित लक्षम जदूराई । चौथे ताराचद कहायो, जहि यह अश्व विनोद बनायो । हरिपद चित नाम की पासा, सालहोत्र वंदे पर कासा । कुसलसिंह महाराज अनूप, चिरंजीवो भूपन के भूप ॥ मोरठायह ग्रन्थ मुखसार, जिनके हेतु होमे मैलेउ सुधारि । विचारिचं चंदनन यो तथा । सम्बत सोलह से अधिक चार चाने मान । प्रन्थ कयो कुपलेस हि, नर दोक श्रीभगवान । मास कालगण सुकल पक्खि, दुतिया शुभ निधि नाम । चंदन चंदन सुभाखि श्रत गुरु को कियौ प्रनाम ।। (म)त दस और पाठ सो, ईक्यावन पै स्यार । फागुन शुकल त्रयोदसि, लिखी कार मोमवार ॥ अश्व विनोद ग्रन्थ यह, सालहोत्र सुरताल । प्रति देखी को लिखी मे, खोटि नहिं नंदलाल । २६ पं०१० अ०३० अथ अब धोका के सोरठा पत्र ३ और कुत्त पत्र २६
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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