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ले-इति साल होत्र संपूर्ण घोड़ा को। लिपिकतं वैष्णष जानकीदास । कस्लगढ़ मध्ये । सं० १६६२ मती श्रावण सुद ११ बुधवासरे। अशुद्ध लिखित
[कु मोतीचंद खजानची संग्रह ]
विज्ञान (५) शुकनावली- संतीदास। आदि
गब्ध
महावीर को ध्याइके प्रणमं सासति मात । गनपति नित प्रति जे करें, देव बुद्धि विरचात ॥ १ ॥ गुरुचरणन को वंदना, कीजै दीजै दान । इस विध होनी जावता, पाइ जइ सन्मान ।। २ || रीत हाथ न जाइये, गुरु देशों के पास । अरु विशेष पृच्छा विषे मुदा श्रीफल तास ।। ३ ।। स्वस्ति चित्त सौ ठिकै बोलो मधुरी वानि । पीछे प्रश्नोत्तर मुणौ, पामा केनल ग्यानि ।। ४ ।। श्रवपद अक्षर चार यह लिखि पासौ चौफेर ।
वार तीत जपि मंत्रको पीछे पासा गेर ॥ ५ ॥ अहो पृछक सुण हुसुण तुमारे ताइ एक तो घड़ा बल परमेश्वर का है, परन्तु तुझारे शत्रु बहुत हैं । अरु तुम जानते हो जो मुझ एकले से एते शत्रु विस भांति क्षय हुवैगे । सो सब ही शत्रु अकस्मात क्षय हु★गे। अरु ज्यो कछु मन बीच नीत बांधी है, सो निह सेती हयिगो। चित चिंता मिटेगी।
श्रीपाठक जगि प्रकट अति सुथाणसिंघ के गुण । सतीदास पंडित करी, सुकनीति ससनेह ।।