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________________ ( २३२) कथा वारतावाद विधि, औ उपहास नसाइ । खेल समै मकरंद कहि, मादक द्रव्य न खाइ ॥ २० ॥ श्रादि यौ ही मनु पासा धरै लरै डर क्यों सोई । बुध जन साहस सिद्धि कहहि करता कर सो होई ॥४.७ ॥ अन्त ध्यान धारना अनहदवानी, कारन मन ठहर यें । या प्रकार जो बुधिबल खेले, तो कहु अलख लखैये ॥ ७३८ ॥ . जो अभ्यास कर बुधिबल मै तौ क .... प्रति-पत्र से ५२ ५०६.१०२४ साइज १.४६॥ [स्थान अनूप संस्कृत पुस्तकालय ] (४) शालीहोत्र (अश्वविनोद ) रचरिता-चेतनचंद सं० १८५१ ( मैंगर वंशी कुशलसिंह के लिए इ० ) पना २६५ एगिभग अथ घोड़े का इलाज । दोहानमो निरंजन देवगुरु, मारतंड ब्रह्म । रोग हरन अानक कात, सुखदायक जग पिंड ॥ १ ॥ श्रीमहाराजधिराज गुरु, सेंगर वंश नरेश । गुण गाहक गुणिजनन के, नगत विदित कुमलेश ॥ २ ॥ जाके नाम प्रताप को, चाहत जगत उदोत । नर नारी शुख मुस्ख कहै, कुशल कुशल कुसगोत ॥ ३ ॥ चित चातुर चख चातुरी, मुख चातुर मुख देन । कवि कोविद वरनत रहत, सुख मुख पावत चैन ॥ ४ ॥ वाजी सो राजी रहे ताजी एमट समर्थ । रत्न पूरे पूरे पुरुष, लहे कामना अर्थ ॥ ५ ॥
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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