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(२) मदन विनोद-रचयिता-पविजान रचना काल, संवत् १६६० कार्तिक शुक्ल २, पद्य ५६५
अथ मदनविनोद जान को कलौ, कोकशास्त्र लिख्यतेधादि
दोहानाम निरंजन लीजिय, मंजन रसना होत । सब कछु सूझै ग्यान गुन, घट में उपजै जोत ॥ १ ॥ कहा रस रीत सुख, सिरजै सिरजनहार ।
हिलन मिलन खेलन हसन, रहसनि उमगन प्यार ॥ २ ॥ बखान हजरतजू को
इजै समिरी नाम नबी को सकल सिष्ट को मूल ! मित इलाह पनाह जग, हजरत साहि रसूल ॥ ३ ॥ साहिजहाँ जुग जुग जियौ, साहि के मन साहि । राप्त दीप सेवा कर, रहीन कुछ परवाह ॥ ४ ॥ मोद कमोदनि चंदतै, कंवल पतंग प्रणेद । रसिकन के मन खिलन की, कोनो मदन विनोद ॥ ५ ॥
अन्त
संवत सोरह स निवे, कातिक पुर्वी तिथि दून ।
ग्रंथ करयो यह जान कवि, रसिक गुरु करि पून ॥ इति श्री कोकशास्त्र मतिकृत रसिक ग्रंथ कविजान कृत
लेखनकाल-सं० १७४३ रा श्रासाद सुदी १४ दिने लिखतं चूडा महिधर वास मेड़तो पोथी महिधर री छ।
पत्र-२७ पंक्ति २६ अक्षर २०, साइज ६४१० वि० प्रति किनारों पर से कटी हुई है ।
[स्थान-अनूप संस्कृत लाइबेरी]