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________________ ( २२६) अब अदत विलास अन्ध लिख्यतेआदि जैसे जैसे पुष्प गंध, हरेहि तिल को तेल ॥ तैसे तैसे वास गुन, कहियो वास फुलेल ॥१॥ चौपाईकोई बहुत अचरिज दिखलाने, कोई नाटक चेटक ल्यावै । कोई इन्द्रजाल ले आया, कोई कायाकल्प दिखायै ॥ २ ॥ थचरिज अचरिज खोल मिल, ए कोतिकदा ग्यान । श्रेक येक वरनन करै, रीझत चतुर सुजान ॥ ६ ॥ संवत सोरेसे गर्ने, अरु पचानवै राख । ९६ अंक गन लीजियो, वेद भेद सब भाख ॥।॥ विन ही विदा बटापा भागै, दौरि बालपन श्राधै । श्रीसी जुगत सिद्ध को जाने, करै सिद्ध सो करियै । कायाकल्प और बल बाधै. जामैं सब सुख करियौ । जब लग जीवै सहज एच सोवै, जो इह मन वै करियै ॥११॥ इति श्री मीगं सेदन गृहर कम अभून विलास । लखनकाल-संवत् १६११ मिति माह सुर ४ ग्रंथाग्रंथ ४३०॥ प्रति-पत्र १५ पंक्ति-१३ । अक्षर-३५ साइझ Etx५ स्थान-महोपाध्याय रामलालजी संग्रह । बीकानेर प्रतिलिपि अभय जैनग्रंथालय। विशेष'- इसमें वशीकरण, अष्टि करन, पूर्व जन्म दर्शन एवं स्तमन बन्धन धादि प्रदूत प्रयोगों का संग्रह है।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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