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________________ (२२८) प्राचार्य सबला ग्रह पुत्र लिखतं प्राचार्य सूरतराम |श्री।।श्री। ( प्रति- जैसलमेर लोकागच्छ भंडार ) प्रतिलिपि सं० २००७ आश्विन शु०१४, बदरीप्रसाद साकरिया । सुन्दरी गजल । रचयिता-जटमल नाहर । प्रादि सुंदर रूप गाढीक, देखी बाग भू ठाटीकि । सखियां बीस दस है साथ, जाके रंग राते हाथ ॥ १ ॥ निरमल नीर सूनाहीक, ढंडीया लाल है लाहीक । घोटण सबे सालू लाल, चल है मराल कैसी चाल ॥ २ ॥ अन्त जैसे पचन त्रिय कहती कि अपने शील में रहती कि जटमल नजर में श्राक, दर तुझ है शावास, पूजउ सकल तेरो श्राश । अपने कंत सूकस र ग, कर नवरस सम्म श्रमं ।। इति सुन्दरी गजल। लेखनकाल संवत १४७५ वर्षे वैशाख सुदी १४ दिन लिखित पं० मुख हेम मुनिना श्री लूणसर मध्ये शुभं भूयात् श्री। प्रति-पत्र-१०। अन्त पत्र में ( पूर्व पत्रों में जटमल रचित गारा वादल वात व लाहौर गजलादि है) पंक्ति-१६ । अक्षर-४० । माइज-१०४४|| _ [अभय जैन ग्रंथालय ] (E) इन्द्रजाल शकुन, शालिहोत, सतरंज खेल, काम शास्त्र (१) अद्भुत विलास । रचयिता-मीरां सेदन गृहर । रचना काल१६६५ । पद्य ११८ (बीच में बड़े बड़े पद्य)
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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