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(अलब्ध प्रतियों में पहले के २ अध्याय नहीं है एवं तीसरे के ४७ वे पद्य से प्रारंभ होता है। ४७ वे पद्य को प्रतिलिपि में प्रथमांक दिया है)।
इसके पश्चात् कवि वंश का वर्णन विस्तार से पर अस्पष्टसा हैअंत
लाज खिते ति कुंकम चढाय सिवभक्त रतन रासो पढ़ाय । उज्जेन छेत्र सिसुरा महान् भी ज्योतिलिंग महकाल ध्यान ॥
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कहि कुंभकरन वर्नन बिमल रामनाम असरन सरन ।
रामो अगाध सिवकर रतन कुम्मकान कवि इन्द्र । कित शूगार सम सपा छटा सिध श्रानंद । धुवति मनसाहिट अवन सुबहान मुखमल प्रपूर रब । प्रदिन पर फलक तव पुरतक प्रसरिथ धुव ।। दिज नृप कवि भूत तिलकन अति परिगह गछाह मन । चित चमत्कार सस्फुट वचन अस्त्र मस्त्र चतुर्थ इति ॥
सिव रतन सिध रासो सरस अस विधान सन परि नृपति । इति श्री कवि कुम्भकरन सत्तपुरीमध्ये मुकुटमणि अवतिका नाम क्षेत्रे श्रीसि. पुरह महासरिजतरे श्रीसिवाश्रीगगाजी सहिते श्रीज्योतिलिंग महकालश्वर सविध जुध उभय साह अवरंग मुरारि जवनेंद्र सम महाभारते महाराजाधिराज जसवंत सिंघ नमे अनुजरतन सेना धवते प्रचण्ड इद्र जुगले तत्र मुक्तिद्वार सुकहित कपाटे अनेक सुभट सपूत रविमण्डल भेदनेक वीरोछवे तत्र रतन संघ सिवस्वरूप प्राप्त कैलासवासे तत्र महमा वर्णनो नाम प्रस्तावः ।। इति श्रीरतनरासो संपूर्णम् ।
प्रति (१ ) १५१ प्रति ( २ ) बद्रीप्रसादजी साकरिया की दी हुई प्रतिलिपि जोधपुर से गई प्रति ( ३ ) बीकानेर के मानधातासिंहजी के मारफत गाहा प्रति (४) राजस्थान रिचर्स इस्टिट्यूट, कलकत्ता।
( १-२-३ प्रति-श्रीमहाराजकुमार श्रीरघुबीरसिंहजी सीतामऊ की रघुबीर लाईब्ररी स्थित २ पुरानी शैली की १ प्रेस कापी )।