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________________ ( २२३ ) सकल बादी शिरोमणि रूपचंद्र गुरुराज तासु शिष्य वरगति बहु शास्त्र सार बिंदु पदम सी गुरु अनुग्रह शिरधरी । मुनि शंभुराम नृप गुन कलित जलधिबंध रचना करी ॥ २ ॥ दोधकविबुध वृद थानंद पद, सीमित नगर मझार । सिद्ध भयौ ९ सुमन जन, सुस्वद सिंधु बंधसार ॥ ३ ॥ इति प्रशिन्ति ।। इति श्री राजराजेश्वर श्री मन्महाराजाधिराज महारावलजि छी श्री १०८ श्री मूलराज जिवां गुण वर्णन मय जलधिबंध दोधकार्थाधिकारी लिखितः प्राज्ञ शंभुराम मुनिना सद्विधु शर सिद्धि रसा प्रमिते मधु मास स बलमा पक्ष पंचमी तिथौ यामिनी जानि तनय वासरे श्री ज्जेसलमेरू दुर्गे ॥ प्रति-पत्र वैद्यवर बालचंद्रयति संग्रह चित्तौड़, प्रति लिपि हमारे संग्रह में । वि०- इसके बाद ही इच्छा लिपि स्वरूप लिखा है। देखें नागरी प्रचारिणी पत्रिका वर्ष"अंक (६) रतनरासो-रचयिता-कुभकरनआदि तेजपुंज तले विलद दिल पर अजब करार । खतम रेफ हिम्मत वलीय अल्लहु पर इकतार ॥ १ ॥ अजबलाल इक बेहा, हिन्दु जौहर अजून । इसक इवक किम्मत पदा हिम्मत 4 महबूब ॥ २ ॥ चातुर चकता चक्रवतीय चित्र गिय खूमान । कमंध वंस कूरमवली बादव बह चहुवान ॥ ३ ॥ ब्रह्म माख गिर्वान बत चारन चर चतुरंग । भषि मध्यह वानिप निकट गिय गांधर्व उमंग ॥ ४ ॥ मैं चठ्ठिय पारसीय, पसतौ बरब प्रबंध । राजनीति उक्त मरिख, कापन चिकन बंध ॥ ५ ॥ इति श्री कुभकरन विरचिते काव्य अष्टक रतना करे प्रश्नोत्तर कथन तृतीयोध्याय ।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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