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भक्त हिय में धारि के, और आनि की रीति । लोक वेद संगत लिये, प्रभु चरनन की प्रीति ॥ यथा सकति कविता कही, प्रभु के नाम प्राय ।
जग (त) नंद करि जानियौं, अपनी गोकुल नाथ ॥ मिलिका छंद।
इति श्रीमदगोकुलेश पादपद्मपादुके शरज अंजलिसरंद बुधि सदा मेषके जगनंद कविराज विरचिते श्रीगोकुलेशचरिते सुखविवाहलीलावर्णनं नाम तृतीय प्रकरणं समाप्तमिति-शुभं भवतु-कल्याणमस्तु । शुभं भूयात् ।
ले-संवत १९२६ श्रापाद वदि १ भृगुवारप्रति पुस्तकाकार पत्र ६१ पं० १० अ० १४ साइज६x६
[ स्थान-अनूपसंस्कृत पुस्तकालय ] ( ३ ) प्रथीराज विवाह महोत्सव । पा ५२ । लिखमी कुशल । सं० १८५१ बैशाख वदी १० श्रादि
छंद पद्धरी संवत अठार, कावन्न पेशाम्व मास बदि दमम दिन्न । हिय हरष थापि थाप्यो ज ब्याह अवनी कार लोक निहुच उछाह ॥ १॥ मुचि मजन सामा किय सु श्रंग चरची षम धोई धंग चग । पो साषदेत्र वस्त्र जु पुनीत गावै तिनकी छवि सकल गीत ॥२॥ रंगी म केसरी पाघ रंग शुभ थापी अविचल सीस संग ।। मनि जटित H यापे थप्यो मौर ठहराई किलगी मध्य और ॥ ३ ॥
बैठे सिंहासन विविध ग्यांन बहु करै न्याह के जे विधान । दुज सकल सफल श्रासीस दीय पछिम पति तिहिं पर नाम कीय ॥४६॥ भोजन कीन्हे बहु भांति भौति पावत जुम राति बैठि पाति । परस पी करी पहरावनीय भई बात सबै मन माननीय ॥५०॥