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________________ (२१८) (२) गोकुलेश विवाह-जगतनंद आदि श्री गोकुलशो जयति । श्रथ विवाह छप्पय । श्री वल्लम पद कमल युगल निर्मल दुति प्राजे । श्री गोकुल अवास्त पास मुखरास विराजे ॥ माचरवाद विहंडि चन्ड शतं स्थंडि खंडि किय । दुर्जन मुख विदला नटवल उईवसा फलोदहिय ॥ अति जदार सम्वरूप लाखि भक्कन हित वा अपुधरण । जगतनन्द श्रानन्दकर श्री गोकुलेश यशग्गा शरण ॥ प्रगट मये विट्ठलनाथ के, श्री वल्लम सुरराज । शरण पुरुषोत्तम लखे, करत भक्त के काज ॥ गोकुलेश निज ईश को, मथुर मध्य विवाह । जगतनन्द यानन्द सो वरनत चित उत्साह ॥ सम्बत् सोरह से सुखद वरखे लखि चोवीस । वद अषाढ़ गुरु द्वेज को, व्याहे गोकुल ईस ॥ चंडना वेशभर सो वातै कहा बनाय । तुम्हरे कन्या रत्न है सो बोजो बितलाय ॥ श्री वल्लभ सब गुन मरे, विठलेश के नन्द । विठलेश विनती करत, श्राहो भर सुख कन्द ॥ चित विचारत घोस निसि, करि करि उतम चंद । मगन भयो प्रभु प्रेम में, वरनत कवि जगनंद ॥ कवि सबसों बिनती करत, मत सुनो चितलाइ । मूलो चूको होई सो, दीजो अबे बनाए । गोकुलेस की व्याह की, लीला श्रगम अपार । जगतनंद तितनी कही, जितनी मति अनुसार ।।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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