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________________ सुनें पर्दै मुग्याननर, सुम यह शिवको व्याह । सकल मनोरथ सिद्धि कर, अचल होहिं उबाहु ॥७२॥ संबन ठारह से उपरि सत्रह वर्ष सुजान । सावन सित पाँच कर पूरन अन्य प्रमान ||७३॥ इति श्री मन्महाराउ लषपति विरचित मदा शिव ब्याह संपूर्ण । संवत् १८५७ ना वर्षे शाके १७२२ प्रवत्त माने श्री माघ मासे कृष्ण पक्षे ११ एकादशी तीधौ चन्द्र बासरे लिषितं पं०। श्री १०८ श्री विनित कुशलगणि तत् शिष्य श्री श्रीज्ञानकुशलगणि लिपीतं तत् शिष्य पं०। कुपरजी वाचनार्थ लीपित श्री भुज नगरे लीषितं ॥ पत्र संग्न ३३ । प्रति-साइज ११४श पंक्ति ११ । अक्षर ३० । [राजस्थान पुरातत्व मंदिर जयपुर] (७) ऐतिहासिक काम ( १ ) कामोद्दीनपन- पद्य १७७ । रचयिता-ज्ञानसार । रचनाकालसम्बत् १८५६ बैशाख सुदी ३ जयपुर । आदि तारिन में चन्द जैसे ग्रहगन दिनन्द तैसे, मणिमि में मणिंद त्यों गिरिन गिरिन्द यू । सुर में पुरिंद महाराज राज वृन्दहू में, माधवेश नन्द मुख सुरतरु सुकन्द यू ।। अरि करि करिंद भूम मार को फणिंद मनौ जगत को, बंद पुर तेज ते मंद यू । श्राशय समन्द इन्दु सौ चन्द ज्याको मदन कर गोविन्द प्रतपै प्रताप नर इन्द यू ॥ ग्रन्थ करो षट रस भरो, बरनन मदन अखण्ड ।। जस माधुरिता ते जगति खंड खंड मई खण्ड ।। १७५ ॥ सुघरनि जन मन रस दियें रस मोगनि सहकार । मदन उदीपन ग्रन्थ यह, रच्यो कथ्यो श्रीकार || १७६ ।। जग करता करतार है, यह कवि वचन विसाल । पे या मति को खण्ड दै, हैं हम ताके दास ॥ १७७ ॥ विषय- जयपुर के महाराजा प्रतापसिंह का अलंकारिक वर्णन । [प्रतिलिपि- अभय जैन प्रन्थालय]
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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