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कवि गुलाब समते लघू , कवि कुलही कौ दास । किरपा सीतारामतै, धरत अयंती बास |॥ ८ ॥ भी राधा बाधा हरन, मोहन मदन पुरार । प्रगट करयो निज प्रीत सुं, कवि गुलाब सुषसार ।।।। बिनती सुनौं गुलाब की, कबिता दीन दयाल ।
जहाँ जहाँ जो भूल है, लीजै श्राप सम्हाल ॥६॥ इति सुषमार ग्रंथे चित्रालंकार धर्ननं नाम चतुर्दस उल्लास ॥ १४ ॥ संपूरनं ।। माम सांवन बदी १२॥ वार बुध प्रस्थान अवंतिका ।।
पत्र सं० ७८, प्रतिष्ट. पंक्ति १७ । १८ प्रति पंक्ति अक्षर १८ गुटकाकार नं0 छ. ५६ । साइज ८x ||
[मोतीचंदजी खजांनची संग्रह
(४) वैद्यक (१) दडलति विनोद सार संग्रह-(वैदाम ) दौलतखान आदि
श्रीमंतं सच्चिदानंदं चिद्रूपं परमेश्वरम् । निरंजनं निराकारं तं कंचिन्प्रणमाम्यहम् ॥ दोधकाधिक सद्भत्तैः पाटः पाठानुगैर्व रैः । शास्त्र विरय्यते रुच्यं दृष्ट्वा शास्त्राण्यनेकशः ॥ दडलति विनोद सारसंग्रह नाम प्रगट पामाथी पत्र । से परोपकृत्यै सन्मने सुमते कवीन्द्राणाम् ॥ श्रीमद्वागडमंडलाखिल शिरः प्रोद्यत्प्रमामंडनाः । श्रीमंतो दिपखान भूपतिवरा नन्धाः सुरानन्ददाः ॥ तत्पष्टोदयसानम नकरै मस्वित्प्रमामास्करैः । श्रीमहऊलतिखान नाम वसुधाधीशैः सुधीशाश्रिमैः।।
(त्रिमिः कुलकम् ) तथा दोहाधन्वन्तोर मुख वैध बहु सुद्ध चिकित्साकार । तनसुद्धिा मुणि योग पथ लहइ संसारह पार ||