SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताप त्रिकछक योगविद पदइ चिकित्सा सत्य । मुक्ति होइ पर मावि निपुण इहाँ चाहा तउ प्रत्य ।। धर्म अर्थ श्रह काम कऊ साधन एह शरीर । तम् निसेगत कारणाइ उथम करइ सुधीर ॥ २४ दोहे के बादइति श्रीदऊलति विनोद सार संग्रहे दऊलतिखान नृपति विरचि निर्मितं वैधगृणाधिकारः । दोहा - १०१ ज्ञान परम कहु जोगी अंनद का कुछु परम वैध बरवाना । ग्रन्थ विसंधि जिहां किछु पाया भूपति दऊलतिखान दिखाया ।। इति श्री अलपखां नृपति सुत भूपाल कृपाल श्री दऊनति खान विनिम्मिते दुऊलतिसार संग्रहे। चरम ज्ञानाधिकार सारः । फिर काल ज्ञान, मूत्र परीक्षा, नाड़ी परीक्षणएवंच षोडशवर लक्षणसहित घोषध का बखान । क्या बागडदेशाधिपति नृप श्रीदऊसातिखान ॥ इति श्री वागड देशाधिपति श्री अलिपखाननंदन श्री दऊलतिखान विरचितं श्री दऊलति विनोदसार संग्रहे षोडशवराधिकार सारः । फिर अतिसार १५ रोगों के ४१वें में कुल विंशति, ४२२ में शीतपित्ताधिकार, ४३वें में अम्लपित्ताधिकार, ४४ विसर्पि, ४५ भृता-श्रपूर्ण । इति श्रीदऊलतिविनोद सार संग्रहे विसर्पिनिदानाधिकारसारः । बड़ा गुटका पत्र ३६७ मे ३६७ पं. २४-२५. ४०।४८ ( १७ वो शताब्दी व ५८ वी प्रारम्भ )। [अनूप संस्कृत लाइब्रेरी] ( २ ) वैध चितामणि ( समुद्र प्रकास सिद्धान्त ) जिन समुद्र सूरि आदि प्रथम पत्र नहीं।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy