________________
! १६६ )
नाम धरयो इह ग्रन्थ को, रसगेह सिंगार । दास दमोदर रसिक कुं, कोयो प्रेम को हार ॥१२॥ नों ही रस सबकौं कहें, तामें सुभ गार । दाम ताके रस बहूं, एक एक में सार ॥१३॥
___ अथनवरम नाम वर्णनप्रथम गारो जानीये, दुजी करुणा मान । तीजो अदभुत कहत हैं चउथो हास४ वषाण । पांचो रुद्र" व वी२६ सप्त भय" चित्त बानि । अष्ट विमिछ वषाणि ह नोहों शांति सुजाण ॥१५॥
अथशृंगार रस वणनं ।। दो० रस *गार के रस बहू वरण २ है जोग । दास ताके रसनकुं, जाणे चातुर लोग ॥१६॥
श्रांत
अथ राजसी नांयका को अभिसार वर्णन गति गजराज लाय, तर ग के तुरंग कीये, विजुरी चिराग बिचिराग कीयें केंदरी । कुचतो निसान चीने, पल्लव निसान लीयें, जल धार फोन भार अंग संग हे भली । मन के मनोरथ हैं, पाय दल पूरे सूर, सुरति संग्राम कुतो बाम साच के चली । निसकु दमामो घनघोरन को दीये दास, लीये साज राजन ब्रजराजन जा मीली ॥ ६ ॥
दूहरा ।। अथ भाई काको अभिसारिका ।। दाउ परें पर मावसु, मिले हित करि प्राय । भाई काको अभिसारिका, बण दास बनाय ॥ २८ ॥ दाउ परें पर दास चली अली संग लीयें ।
निकसी व्रज प्यारी पीत पोतांवर काठ कले- । आगे लिखते छोड़ा हुआ है। श्रागे मदन संवाद है । विहरीसतसई सं० १७६४ लिखित है।
प्रति-गुटकाकार साइजx
॥ पत्र ८५०१५ अ.४६
[अभय जैन ग्रन्थालय]