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१६ के बाद- अब लघु छद, मधु छंद, दमण छेद बादि । १६ के बाद फिर-यहीछंद लगाणिया छ।
पत्रांक ६५ और ६६ खाली है। पत्रांक ६७ पञ्चांक २३ के बाद प लिखते हुए छोड़ दिया है । फिर फुटकर कवित्त और दोहे हैं, जिनके कर्ता सारंग, कालीदास, पातसाह आदि है। व जिनका विषय अकबर पातसाह के कवित्त, नाजर रा सारजादेरो, खानखानारा झूला, फिर कवित्त रायदासजी को।
रायदासजीरो गुण अमृतराजरी कियो, पत्रांक ७६ तक है। पत्र ७७ मे गारु अनूप चतुरभुज दसवधि कृत्य । ग्रन्थ प्रारंभ किया है।
पत्र -साहिबाजखान रो, पतिसाहजीरा ढढरिएपद चतुर्भुज कृत्य । पत्र ७६ पद्य ६६ फिर कवित्त ।
एस विधा देत साउ, वित चाहत, वित दे विथा तूहि पदावतु । फैल्पद्रुम कलिकाल चतुर पति, कविता करण कहत जिय भावतु ।। जा देखे सुख सपति उपनति, दुरति दूरि नासत तहा जावतु ।
अहरिदास सतन सुखदाता,चतुभुज गुणी जनराइ कहावतु ! प्रति गुटकाकार (अन्य अपूर्ण)
[अनूपसंस्कृत लाइब्रेरी]
( ५ ) पिंगलादर्श-रचयिता-कवि हीराचंद र० सं० १६०१ मोरवी।
प्रादि
छप्पय सच्चित श्रानंद रूप, क्वचित माया ने गुनमय । कुचित तासो नाहि, खचित ज्योति सो अक्षय ॥ अर्चित ब्रह्मादिते रचित, जाते जनि स्थितिलय । किंचित नाही द्वैत, उचित अच्युत सुख अतिशय ॥ सो चितवत हों इक बाप प्रभु, अचित रहित ओंकार जय । वंचित नास्तिक नाश हिलहो, संचित सों बांधे समय ॥१॥