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________________ ( १९२) निहारि १२ नहीं उदधिश्चारि १३ बुडेहि तिवारि १४ लिहिगति निनारि १५ जगदेति धारि १६||३|| वजति निसाण १ धुन घण समान २ अरि सुणत कान ३ अति ही सकाण ४ दस दिम पराण ५ गृह मग मुलाण ६ तज्जति गुमाण ७ सभ गई हिसाण ८गिरवण परवाण ताह फरत थांण १० जब जुर ने पांण ११ निरखत वेदांगा १२ तर तजति प्राण १३ श्ररि कोउ रहाण १४ लंकन अहाण १५ अकबर की प्राण १६॥४॥ दोहा अकबर साहि प्रवीण भय, कह्यो कहुह सब बंद । मुगम होहि ममि मंडले, पटत वदति श्राणंद ॥ ३ ॥ . पतुर चतुरभुज सुग्गत ए, यो बुद्धि अणुमाण । याहु साधु सम मुचित हुई, करहु ग्रन्थ सणमाण ॥ ४ ॥ सुम भरथ गौतव गरुड़, कश्यप सेष विचार । १४ पिंगलु ए विदत भइ, यह अब तिहअ निहारि ॥ ५ ॥ पिछिमिति तर कहु मन विष्णु ए बिगाहु लघु नाणि | प्रगट ताहि घुधि जन कहत, अवर सारे गुरु मांण ॥ ६ ॥ विद सहित संजुत पर, अरु विकला चरणंतु । कबहु लघु राजुत पर, दीह सबै बरणति ॥ ७ ॥ कबहु अक्खर त्रिणहुइ, मिलति परति एक सथ ।। उहै एक लघु जाग्गिए, बुधजण कहत समथ ॥ ८ ॥ मग तगण सम पर,................" x x x x x x द्विविध छंद फणपति रचित, वरुण वरुण मत परमाण । करुह प्रगट सब जगत्रहि, जघा बुध अणुमाख ॥१५॥ सासी जीगो श्रीछंद, तिणछंद, संसाराजी छंद, विद्य तमाला छंद, हमाल, राइमाला छंद, मालती माला छंद, विजूहारा छंद, विश्वदेवा छंद, सारंग छंद, बमरूवी छंद ।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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