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________________ उपोद्घात दोहरासंस्कृत प्राकृत पिंगलन, हे अनेक सो देखि । ताते रचना अधिक गहि, या में धरी विशेखि ॥१॥ कुंडलियाताते मित अच्छर प्रती, अर्थ बुद्धि को धाम । घंद नाम यति भेद अरु, सूत्र चिह गन नाम || सूत्र चिह गन नाम, एक पाद हि मैं श्रावै । एसो करो विवेक जाइते ओर न मावे ॥ भागें पिंगलके भये न्यूनाधिक याते। लेह समन को सार, बनाये मुन्दर ताते ॥ ३॥ दोहा ताते याके नामजू. पर्यो पिंगलादर्श । कीजो सम बुध जन छमा, जो श्रावै अपकर्ष ॥ ४ ॥ विखे गलादर्श में, दर्शन पाच प्रकार | प्रथम गनादिक दुतिय है, वरन छंद उपचार ॥ ५ ॥ मता छंद तृतीय हे, तुर्य विशेष विचार । पंचम प्रस्तारादि हे, उदाहरन सविकार ॥ ६ ॥ ग्रंथ कारण-दोहासंबत उन्निश शत अधिक, एकेश ऋतु वसंत । फागुन शितयुत अष्टमी दिन दिनकर बिलसंत ॥१॥ मो अनुमो सम पिंगला-दर्शसटीक समाप्त । बुधजन शुध कर लीजियो, दोष होह जो प्राप्त ॥२॥ सप्त पुरिन में यह पुरी, तासों सिंतर कोश । पूर्व दिशा में मोरवी, जहां नृप निति ज्यों श्रोस ॥३॥ ताको श्रीमाली बनिक कानजि त धीमंत । हरीचंद मनस्वि सो, जा पति कमला कंत ॥५॥
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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