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कवितः संमतलोक पाडव" नाग चंदन' नभ मास धवल पप पंचमिकुजवार ठानियो । स्थति नष्यत्र सुंदर चंद तुल रास धाये मध्य रवि समें इंद्र जोग स्मानियो । छंद अंगार नाम यह अन्य समापत भयो, नवेनगर सहर निज मन मानियो । कहे कवि महासिंघ जोइ पढ़े बांचे सोइ मेरो नित प्रने जासी कृष्ण जानियों ॥२८॥
इति श्री संवग महासिंघ विरचित छन् भंगार पिंगल संपूर्ण) संवत् १८७६ ना पोम अद ३ अनेने लिषितं जामीमकनजी तथा डोशा । प्रति परिचय-पत्र २० साइज १०x४॥ प्रतिपृष्ठ पं० ११ प्रति पं० १०३५
[राजस्थान पुरातत्व मंदिर-जयपुर ] ( ४ ) पिंगल अकवरी- चतुर्भुज दसवधि कृत्य
मूल दोहा जव्वण धर स्वम श्रादि दे। अष्टौ अक्षराणि निषिधा । गुधिगण गणपति चिति चित, प्रवति घकह अपार । देहि बुधि प्रभु जगदगुरु, करुह लंद विस्तार ॥१॥
चौपई अगदरशाह जगत्र गुरु माणोहु, इहि वात मण महि अणुमायाहु । सरद सुधाकर कीरत मागाहु, निसिदिन हिण ताहि सामाणड्डु ॥ २ ॥
अकवर विरजि १ दल विबुध सजि २ गजमद गरजि ३ बजाति बजि ४ नृपगण तरजि ५ कण सकवि रजि ६ अरि सकल भजि ७ निज भुषण तजिरवण गई तिलजि तण रहिस धजि १० वण फिरति खजि ११ मुख छविण छजि १२ मनु दुख उपजि १३ जलनिधि निजि १४ मवहण निवजि १५ जुगपति रजि १६॥
रण चढत मीर १ तेउ विविध वीर २ प्रति समर धीर ३ बुधि बल गभीर ४ जहां तहां हि भीर ५." ६ अरि भय अथीर ७ उदलागति तीर सहिय बढति पीर : मुख थकित गीर १० नैणण तनीर ११ दुरबल शरीर १२ वण पण करीर १३ ध्रम झटक वीर १४ नहीं जुरत नीर १५ भोजन समीर १६||
अरि जिय विचारि १ भुय भय परारि २ गढ-मह विदारि ३ अपहय उदारि ४ पुर किय उजारि ५ निज भुवण जारि ६ मण गण विधारि ७ धन विविध