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प्रति परिचय:- पत्र ३५, साइज १०x४॥, प्रतिपृष्ठ पं०.६ प्रति पंक्तिप० २८
[राजस्थान पुरातत्व मंदिर-जयपुर ] (६) लपपति मंजरी । पद्य १४६ । संवन् १७८४माघ वदी११ बुधवार । आदि
श्री गणेशायनमः सुखकर वरदायक सरस, नायक नित नवरंग । लायक गुन गन सी लखित, जय शिव गिरिजा संग ॥ १ ॥ मली रत्ती तिहुँ भौंन में, बढत चढ़त विख्यात । पातक न रहत पारती, भजन भारती मात ॥ २॥ चिंतित सुफल चित्तौनि मैं, दीननि कौं निहिं दीन ।। वा गुरुके पद कमल जुग, मन मधुकर करि पीन ॥ ३ ॥
दोहा वत सतरैसै बरष पनि ने ऊपरि च्यार । माघ मास एकादशी किसन पछि कविवार ॥ ७ ॥ नस्पति कुल बन्यो प्रथम राज कुलीकी रूप । पुनि कवि की पट्टावली उचरत सुनत अनूप ॥ ८ ॥
अन्त
माने जिन्हें महाबली, महाराज अजमाल । श्रम सूबे अजमेर के, मान के महिपाल || ४१ ॥ करि लषपति तासौ कृपा, कयौ सरस यह काम । मंजुल लषपति मंजरी, करहु नाम की दाम ॥४८॥ तब सविता को ध्यान धरि, उदित करयौ श्रारम ।
बाल पुद्धि की वृद्धि कौं, यह उपकार अदंम ॥ ४ ॥ अंतलिस्वते छोड़ा हुआ सा प्रतीत होता है। नाममाला का प्रारंभ मात्र होता है विशेप विवरण
पद्यांक ६ से १२१ सक में नृप वंश वर्णन है जिसमें नारायण से कुअर लषपत तक की वंशावली दी है। पद्यांक १२२ से कवि वंश वर्णन प्रारम्भ होता है।