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________________ (१८४) यह एक ऐतिहासिक ग्रन्थ है। प्रारम्भ के पाठ पत्रों में पद्यों के उपर गथ में टिप्पणी लिखी है। प्रति परिचय-पत्र १२, साइज १०॥४४॥, प्रति पृ० ५० १, प्रति पं०७०३० [राजस्थान पुरातत्व मंदिर-जयपुर ] ( ७ ) (लखपत मंजरी नाम माला) २० ४६ कनक कुशल, पय २०२ सं०। महारक-श्री कनककुशलजी कृत लखपति मंजरी नाम माला लिख्यते ॥ दोहा विबुध वृद वंदित चरन, निरुपम रूप निधान । अतुल तेज आनंद मय, वंदहु हरि मागनान ॥ १ ॥ कवितपय परम जोति परमेस दरस मुख करन हरन दुख । चाचित सर नर चरन राह निरि सरस राजसिरुव ।। अमल । उतमंग गरि अरधग धरत गुरु । 6 डमाल रचि झ्याल माल वनि चंद झाल मक ॥ कवि कनक जगति हित जग मगत, अकल रूप असरन सरन । देवाधि देव शिव दिव्य दुति जदुपति सखपति जप करन || २ ।। दोहा ज्यो गिरि कुल में कनम गिरि, मनि भूषन अवतंस । वृण्वनि में मर दृश्छ त्यों, सनि मै हरिवंश ॥ ३ ॥ कनक कान्ह अवतार कौं, जानत सकल जिहान । पाट मये तिनके नृपति, अनुकम पृथु अनुमानु ॥ ४ ॥ मये हु भूप हमीर के, सब भूपति सिंगार । साहि पम्छिम दिसि को, सबल खल खंडन खगार ॥ ५ ॥ तरनि तेज तिनि के भये, भुजपति मारा भूप । पाई जिहि पति साहिते, पदवी राउ धनूप ॥ ६ ॥ मोज राउ तिनि के भये, गनि तिन के खंगार । राउ तमानी राम सम, सत तिन के सिरदार ॥ ७ ॥
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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