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कहत अकारज विष्णु क, पुनि महेश महेश मतमान । श्रा ब्रह्म कुं कहत है, ईशुगमार या जान ॥ १ ॥ लघु उकार संकर कयौ, दीरथ विष्णु सदेख ।
देव मात लधुरी कहै, दीरघ दनुज विशेष ॥२॥ अंत
विदूषन मुख मुनि तरक पट, अष्टादमहि पुरान ।
नाम माला एकाक्षरी, माषी रतन् मान ॥३४॥ इति श्री घड़ोई रा रतनू बीमाण कुत एकाक्षरी नाममाला संपूर्णः ॥ लेखन प्रशस्ति स० १८५६ ना वर्षे श्रावण बदि ३ रवौ लिखिता श्री गोडीजी प्रसादात ॥ प्रति पत्र २ पं० १४ भ.४८ साइज १०x४।। ( दोनों पत्र एक और लिखे )
[ राजस्थान पुरातत्व मंदिर, जयपुर ] (३) नामरत्नाकर कोष- रचयिता-सरकत सं० १७८६ श्रादि
परमज्योति परमातमा, परम श्रक्षय पद दाय । परमभक्ति धरि प्रथमीह, परम धरम गुरु पाय ॥ वंदु माझ जतिहि दियाल, माषा मंद बनाय । रमिक पुरुष रीझत सुनत, करता कवित कविराय ॥ संस्कृत हा कहित सरस, पंडित पटत प्रवीन । कविजन चारण मारकइ, लधु मति इनत लीन ॥ ता करस्या कविमन तुरत, पढन होत बरपान | सरसमंद थाणे समझि, म चलत अक्षर मान ॥ प्रादिदेव श्ररिहंत के, रचना ये अभिगम । सिद्धि बुद्धि दीजै सरसती, पद युग करू प्रणाम || नमो जगनायक ईस जिने
सदाशिव शंभु स्वयंभु स्वरेश सुतीरथ कार मिकाल के जान
प्रभु परमेश्वर सर्व सुगपाना ॥