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(१७)
संत /
देषg एक अनेक मैं, ग्यान दिउ नर क्यों दिपक सब गेह प्रति, त्यो घर सकलंद नंत ॥ २
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क्रिष्णादास कवि तुछमति, सबदमहोदधि बाग समस्थ उत्साही, सार हत्थ गही भीममेन नृपराजहित, करु नाम नग कविकुल विगनि मानही, अमरसार
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माहि ।
बांह ॥ १०
दाम |
श्रभिराम ॥
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सवत पट रसात
परिषद् धरिभावत
यदि तेरसिं गुरु पुस्यदिन तिम्रो
प्रबंध
नायरतन की मालिचंद शोभा दिपति
छवि
कोविद कुल कंठ हिल से बितु भूपन • अमरकोष पुन केस किय अमरसिंह मति किस्दास मतिसर सिय कर सुबुद्धि हित
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श्ररध तरंग अनेक छबि, गुन दोस भीमसेन नृपराज के, अघ धरि सुमन रूप सब देह धर, मान प्रमोद कृष्णदास बलिवाश लिय, रचि किय ग्रन्थ साठि तीन से दोहरा, अमरसार वित्र सन सूत किय, जे प्रसिद्ध हित इति श्री श्रमरमार नाममाला दाधक संपूर्ण ।
ले० संवत - १८६५ वर्षे मंगलवारे वैमाख सुदी सातम दिने ७ लाल मध्ये लिखी सामिजी बाल वाचक वाचनार्थे तीखी छे ।
पत्र ८ पं० २९ ० ४२
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मास ।
पटकास || १२
समेत ।
देत ॥ १३
राज |
राज || १४
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नगलाल । गहिमाल ॥ ५८
सुगंध |
प्रबंध ॥ ५६
श्रमिराम |
नाम ॥ ६०
[ स्थान- गोविंद पुस्तकालय ]
( २ ) एकाक्षरी नाम माला-रा रतनू वीरमाला पत्र ३४ श्री गणेशायनमः ॥ अथ एकाक्षरी नाम माला लिख्यते