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________________ . ग० कृष्ण काव्य वसंत लतिका । श्रादि पहले के १६ पन्ने नहीं हैं। मध्य चौकि चले निज टौर में, पंचम जुगल किसोर । को जानै निसि शेष में, को ससि कौन चकोर ॥ ६४ ॥ इति श्री श्रीमद् वसंत लतिकायां पंचमी कलिका समाप्त श्रीमन्मर्कल रुचि रुचिर तक तरुणावलाम्बिताया । नव दल दलित ललित मंजु मंजरी संयुतायो । अलि कुल भाकितायो । प्रादुर्भुत केलि कोरकन्नाम प्रथम म्तयकः दोहा धमल पुखी प्राची प्रिया, मुख पट करिके दूर । प्रात माल नम मैं दयो, लाल अरुन सिंदूर ॥ १ ॥ जागी वधूगन महरि पे, सकुचत सकुचत जाय । परि पायनि घर को चलि, धूंघट में सिरनाय ॥ २ ॥ द्वितीय स्तवक की प्रथम कलिका पूर्ण होकर द्वितीय कलिका के पद्य यह प्राप्त हुए हैं, अन्ध अधूरा रह गया है। लेखनकाल-२० शताब्दी। ___प्रति-पुस्तकाकार । पत्र-१७ से १६ तक । पंक्ति-२१, अक्षर-२०, साइज ६॥४१॥ [ स्थान-अभय जैन ग्रंथालय ] ड़ वेदान्त बुधि बल कथन-रचयिता-लछीराम श्रादि सरसति की उरि भ्यान परि, गणपति गुरु मनाइ । लकीराम कवि यह कथा, बद्भुत कहत बनायी ॥ २ ॥
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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