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________________ ( १६३) लिव चातक पीउ ही पीह लई, मई राज हरी भु देह टिपायो । पतियाँ पै न पाई री प्रीतम की बली, श्रावण बायो पे नेम न पायो ॥ १ ॥ मान के सिंधु अगाधि महा कवि मैसर छीलर नार निवासी । है ज महा कवि तो दिन राज से, भेरो निसाकर कौ सौ उजासो । ' ताते कर बुध सुं यह बीनति, मेरो कहुँ करियो जनि हासो । प्रापनी बुध सू' राज कहै यह, राजल नेमि को बारह मासो ॥ १४ ॥ इति सबैया बारै मासरा समान ।। प्रति-पत्र-१ पक्ति-१५ । अक्षर-४२। [अभय जैन प्रन्थालय] ( ५ ) नेमनाथ बारह मास । पद्य-१५ । रचयिता जिनसमुद्र सूरि । श्रादि श्री या पति तोरण थाया, पशु देख दया मन लख्या । प्रभु श्री गिरनार सिधाया, राजल रांणी न विदाया हो लाल ॥ १ ॥ लाल लाल इम करती, नयणे नीझरणा झरती । प्यारी प्यारी हो नेमि तुहारी, भव मव की केम बीमारी हो ॥ २ ॥ अन्त सखी री नेमि राजुल गिरवरि मिलीया, दुख दोहग दूरे टलिया । जिणचन्द परमसुख मिलीया, श्रीजिनसमुद्र सूरि मनोरथ फलिया ॥ १५ ॥ इति श्री नेमनाथ बारहमासी गीत । [अभय जैन प्रन्थालय] (६ ) नेमिराजिमती बारह मासा। पय १६ । रचयिता-धर्मसी । पादि सखोरी रितु भाई अब सावन की, धुरंत घटा बहू छन की । पानी सुपी पपीयन की, निशा जाये क्यु विरहन की ॥१॥
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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